Monday, 11 February 2019

मैं तुझे फिर मिलूंगा...

मैं तुझे फिर मिलूंगा...
किसी बहते हुए सफर में 
वह लम्हा बनकर की जिनमें तू गुजर रही होगी,
तेरी आंखों के शहरे बनारस में
अस्सी घाट से खेलूंगा,
मैं तुझे फिर मिलूंगा...


ओढ़कर मैं सर्दियों की धूप छू जाऊंगा तुझे बिना बताए या 
आईना बनाकर खुद को रख दूंगा तेरे सामने
फिर सबारती रहना खुद को मुझे देख कर,
मुल्तानी मिट्टी सा मैं तेरे चेहरे पर खिलूंगा,
मैं तुझे फिर मिलूंगा...


बारिश रुकने का नाम लेती नहीं जब नम आंखों से तू मुझे याद करती है,
हवाएं मेरे खिलाफ साजिश करती है जब मेरी तस्वीर देख कर तू बात करती है,
तेरे मन-मंदिर में मैं सुबह-शाम दीपक सा जलूंगा,
मैं तुझे फिर मिलूंगा...


आता रहूंगा तेरे होठों पर प्यास की तरह,
शामिल रहूंगा तेरी सांसों में अल्फ़ाज़ की तरह, 
तेरी रूह से लिपट जाऊंगा लिबास की तरह, 
यह कहानी जिस पड़ाव पर ठहर गई थी उसे दोबारा वहीं से शुरू करूंगा,
मैं तुझे फिर मिलूंगा...

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